समास और उसके भेद | हिंदी में समास

आज हम जानेगे की समास किसे कहते हैं ,समास की परिभाषा ,समास के उदाहरण । समास हिन्दी व्याकरण का एक भाग है । समास कक्षा 6, कक्षा 7 , कक्षा 8, कक्षा 9, कक्षा 10, कक्षा 11 ,कक्षा 12 एवं प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे की लेखपाल ,tet ,pet आदि परीक्षाओं मे भी पूछे जाते हैं । अतः छात्रों को एक बार इसका अध्ययन कर लेना चाहिए ।

samaas

समास दो शब्दों से मिलकर बना है -सम् (संक्षिप्त ) + आस् (कथन) । जिसका शाब्दिक अर्थ होता है -संक्षिप्त कथन ।

समास की परिभाषा

दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को समास कहा जाता है । समास के नियमों से बना शब्द समस्त -पद या सामासिक शब्द कहलाता है ।

समास विग्रह

समस्त पद के सभी पदों को अलग किए जाने की प्रक्रिया समास-विग्रह कहलाती है । जैसे –
राजपुत्र का समास विग्रह है -राजा का पुत्र
नीलकमल का समास विग्रह है -नीला है जो कमल

पूर्वपद -उत्तरपद

समास रचना मे प्रायः दो पद होते हैं । पहले पद को पूर्वपद और दूसरे को उत्तरपद कहा जाता है । जैसे -राजपुत्र में पूर्वपद ‘राज ‘ है और उत्तरपद ‘पुत्र ‘ है ।
सामासिक प्रक्रिया मे पदों मे बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं ,जैसे -धर्मग्रंथ -धर्म का ग्रंथ । यहाँ “का ” विभक्ति लुप्त हो गई है ।
इसके अलावा की शब्दों मे विकार या जाता है । जैसे –
राजा का कुमार – राजकुमार ( “जा ” का “ज ” बन जाना )
घोड़े का सवार -घुड़सवार ( घोड़े के ‘घो ‘ का घु बन जाना )

समास के भेद –

समास मुख्य रूप से 6 प्रकार के होते हैं –

  1. अव्ययी भाव समास
  2. तत्पुरुष समास
  3. कर्मधारय समास
  4. द्विगु समास
  5. द्वंद समास
  6. बहुब्रीहि समास

आइये अब इन्हें विस्तार से जानते हैं –

अव्ययी भाव समास

परिभाषा

जिस समास का पहला पद प्रधान तथा अव्यय हो ,उसे अव्ययी भाव समास कहते हैं

पहचान

पूर्वपद अनु , आ , प्रति ,भर ,यथा ,यावत्त ,हर आदि होता है .

अव्ययी भाव समास के उदाहरण

पूर्वपद उत्तरपद समस्त पद समास विग्रह
प्रति दिन प्रतिदिन प्रत्येक दिन
जन्म आजन्म जन्म से लेकर
यथा संभव यथासंभव जैसा संभव हो
अनु रूप अनुरूप रूप के योग्य
भर पेट भरपेट पेट भर के
प्रति कूल प्रतिकूल इच्छा के विरुद्ध
हाथ हाथ हाथों-हाथ हाथ ही हाथ में
अनु कूल अनुकूल कुल के अनुसार
समुन्द्र आसमुन्द्र समुन्द्र पर्यंत
जन्म आजन्म जन्म से लेकर
उपकूल उपकूल कूल के निकट
दिनअनुदिन दिनानुदिन दिन प्रतिदिन
दुखसंतप्त दुखसंतप्त दुःख से संतप्त
पल पल पल-पल हर पल
बार बारबार-बार हर बार
यथा क्रम यथाक्रम क्रम के अनुसार
यथाशक्ति यथाशक्ति शक्ति के अनुसार
यथा इष्ट यथेष्ट यथा इष्ट

तत्पुरुष समास

परिभाषा

जिस समास में बाद का पद अथवा उत्तरपद प्रधान हो तथा दोनों पदों के बीच करक-चिन्ह लुप्त हो जाता है ,उसे तत्पुरुष समास कहते हैं .

तत्पुरुष समास के उदाहरण

समास विग्रह समस्त पद
गगन को चूमने वाला गगनचुम्बी
यश को प्राप्त यशप्राप्त
चिड़ियों को मारने वाला चिड़ीमार
ग्राम को गया हुआ ग्रामगत
करुना से पूर्ण करुणापूर्ण
भय से आकुल भयाकुल
रेखा से अंकित रेखांकित
प्रयोग के लिए शालाप्रयोगशाला
स्नान के लिए घर स्नानघर
यज्ञ के लिए शालायज्ञशाला
धन से हीन धनहीन
पथ से भ्रष्ट पथ्भ्रष्ट
पद से च्युत पदच्युत
राजा का पुत्र राजपुत्र
देश की रक्षा देशरक्षा
राजा की आज्ञा राजाज्ञा
शोक में मग्न शोकमग्न
पुरुषों में उत्तम पुरुषोत्तम
धर्म में वीर धर्मवीर

तत्पुरुष समास को विभक्तियों के नामों के अनुसार 6 भागों में बांटा गया है . जिसे नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं ,

तत्पुरुष समास के भेद

कर्मधारय समास

परिभाषा

जिस पद में उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान -उपमेय अथवा विशेषण -विशेष्य का संबंध हो ,कर्मधारय समास कहलाता है .

पहचान

समस्त पद का विग्रह करने पर दोनों पदों के मध्य में “हैं जो ” , के समान आदि शब्द आते हैं .

कर्मधारय समास के उदाहरण

समस्त पद समास विग्रह
कमल के समान चरण चरणकमल
कनक की सी लता कनकलता
कमल के समान नयन कमलनयन
प्राणों के समान प्रिय प्राणप्रिय
चन्द्र के समान मुख चन्द्रमुख
मृग के समान नयन मृगनयन
देह रुपी लता देह लता
क्रोध रुपी अग्नि क्रोधाग्नि
लाल है जो मणि लालमणि
नीला है जो कन्ठ नीलकंठ
महान है जो पुरुष महापुरुष
महान है जो देव महादेव
आधा है जो मराअधमरा
परम है जो आनंद परमानन्द
आशा है जो लता आशालता
कायर पुरुष कापुरुष
गगन रुपी आँगन गगनांगन
चन्द्रमा के समान बदन चन्द्रबदन
कमल के समान चरण चरणकमल
नव युवक नवयुवक
नीलोत्पल नील उत्पल
परम ईश्वर परमेश्वर
महान् आशय महाशय
महती रानी महारानी
मृग के समान नयन मृगनयन
लौह सदृश पुरुष लौहपुरुष

द्विगु समास

परिभाषा

जिस पद में पहला पद अथवा पूर्वपद सख्यावाचक विशेषण हो वहां द्विगु समास होता है इस पद से किसी समूह का बोध होता है .

पहचान

प्रथम पद या पूर्वपद संख्यावाचक होता है . जैसे -सप्त ,त्रि ,नव ,चौ ,पंच आदि

द्विगु समास के उदाहरण

समास विग्रह समस्त-पद
सात सिन्धुओं का समूह सप्तसिंधु
दो पहरों का समूह दोपहर
तीनों लोको का समाहार त्रिलोक
चार राहों का समूह चौराहा
नौ रात्रियों का समूह नवरात्र
सात ऋषियों का समूह सप्तर्षि
पांच मढ़ियों का समूह पंचमढ़ी
सात दिनों का समूह सप्ताह
तीनों कोणों का समाहार त्रिकोण
तीन रंगों का समूह तिरंगा
चवन्नी चार आने का समाहार
चौपाया चार पाँव वाला

द्वंद समास

परिभाषा

जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हों और समास विग्रह करने पर ‘और ‘ , ‘एवं ‘ , ‘या ‘ , ‘अथवा’ लगता हो वहां द्वंद समास होता है .

पहचान

दोनों पदों के बीच में सामान्यतयः योजक चिन्ह (-) लगा होता है .

द्वंद समास के उदाहरण

समास विग्रह समस्त पद
नदी और नाले नदी-नाले
पाप और पुण्य पाप-पुण्य
सुख और दुःख सुख-दुःख
गुण और दोष गुण-दोष
देश और विदेश देश-विदेश
ऊंच और नीच ऊँच-नीच
आगे और पीछे आगे-पीछे
नाक और कान नाक-कान
आचार और विचार आचार-विचार
भला और बुरा भला-बुरा
राजा और प्रजा राजा-प्रजा
नर और नारी नर-नारी
खरा या खोटाखरा-खोटा
राधा और कृष्ण राधा-कृष्ण
ठंडा या गरम ठंडा-गरम
छल और कपट छल-कपट
अपना और पराया अपना-पराया
मोल और तोल मोल-तोल
उतार या चढाव उतार-चढ़ाव

बहुब्रीहि समास

परिभाषा

जिस पद में न ही पूर्व पद प्रधान होता है और न ही उत्तरपद . दोनों पद मिलकर किसी तीसरे प्रधान पद की ओर संकेत करते हैं ,उसमे बहुब्रीहि समास होता है .

बहुब्रीहि समास के उदाहरण

समस्त पद विग्रह
लम्बोदर लम्बा है उदार जिसका अर्थात गणेश
दशानन दस हैं आनन जिसके अर्थात रावण
चक्रपाणि चक्र है पाणि में जिसके अर्थात विष्णु
महावीर महान वीर हैं जो अर्थात हनुमान
चतुर्भुज चार हैं भुजाएं जिसकी अर्थात विष्णु
प्रधानमन्त्री मंत्रियों में प्रधान हैं जो अर्थात प्रधानमंत्री
पंकज पंक में पैदा हो जो अर्थात कमल
गिरिधर गिरी को धारण करने वाला है जो अर्थात कृष्ण
पीतांबर पीत है अंबर जिसका अर्थात कृष्ण
निशाचर निशा में विचरण करने वालात्र अर्थात राक्षस
चौलडी चार हैं लड़ियाँ जिसमे अर्थात माला
त्रिलोचन तीन हैं लोचन जिसके अर्थात शिव
चन्द्रमौली चन्द्र है मौली पर जिसके अर्थात शिव
विषधर विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प
मृगेंद्र मृगों का इंद्र अर्थात शेर
घनश्याम घन के समान श्याम है जो अर्थात कृष्ण
मृत्युंजय मृत्यु को जीतने वाला अर्थात शंकर
खगेश खगों का ईश है जो अर्थात गरुड़
कपीस कापियों में ईश है जो अर्थात हनुमान
गिरिधर गिरि को धारण करने वाला अर्थात श्रीकृष्ण
गोपाल गो का पालन करे जो वह अर्थात श्रीकृष्ण
चक्रधर चक्र को धारण करता है जो अर्थात विष्णु
जलज जल में उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल
जलद जल देता है जो वह अर्थात बादल
नीलाम्बर नीला है अंबर जिसका अर्थात बलराम
पीताम्बर पीला है अंबर जिसका वह अर्थात श्री कृष्ण
मुरलीधर मुरली को पकडे रहने वाला अर्थात श्री कृष्ण
वज्रायुध वज्र है आयुध जिसका वह अर्थात अर्थात
वीणापाणिवीणा है हाथ में जिसके अर्थात सरस्वती

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